मंदी ले डूबेगी भारत को
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दुनिया इस समय भयंकर मंदी के मुंह में जा रहा है। दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने साम्राज्यवादी सोच के चलते आयात निर्यात पर लगाम कसना शुरू कर दिया है। आये दिन चीन और अमेरिका टैरिफ वॉर में और भी उलझते जा रहे है। ड्रैगन 30 सालों में सबसे कमजोर हो गया है। दक्षिण कोरिया और जापान भी अलग आर्थिक युद्ध में गए हुए है। आरपीएसी और तमाम चीजें ध्वस्त होते जा रही है।
मोटा मोटी समझा जाए तो दुनिया की स्थिति अभी भी ऊहापोह में है। भारत की स्थिति और भी खराब है। समस्या यह नही है कि अर्थव्यवस्था सुस्त हो रही है, वो आगे पीछे आने वाले समय में होती रहती है, वो एक चक्र है। समस्या देश के नेताओं का बेवकूफ होना है।
भारत के पास ना कांग्रेस के जमाने में अच्छा अर्थशास्त्री था, मनमोहन को छोड़कर और नाही इस सरकार के पास है। इससे निहायत बेवकूफी क्या होगी की सात तिमाही से चीन नीचे जा रहा था और हमारे यहां नेता अमीरों पर 43% टैक्स का प्रावधान कर रहे थे।
सच में? मतलब सच में? इस लिए की देश की जनता दिमाग से हमेशा गरीब रहना चाहती है, नेता यहां सोच ही नही बदल रहे है! अमेजन का मालिक आज दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति है, फैक्ट याद करने में मजा आता है, सुभानअल्लाह!
लेकिन जब बंसल बन्धु देश के सबसे बड़े ई कॉमर्स पोर्टल फ्लिपकार्ट के लिए पैसा मांगने गए तो सरकार ने मना कर दिया! आज फ्लिपकार्ट वालमार्ट के हाथों बिक गया है! फिर भी हम आंख पर पट्टी बांधकर बोलेंगे, जय श्री राम!
ये देश गरीब था, है और रहेगा! मुझे कभी कभी इस बयान में कोई गलती नजर नही आती है, जो लुटियंस ने एक दफा कहा था, की भारतीय अपग्रेडेड बंदर है। ऊर्जा से भरी जनता को समझ नही आ रहा है की सीसीडी का मालिक जो मरा है, वो हमारे ऊपर थूक कर गया है। अगर खुले बाजार में सिगरेट पीना और अंग्रेजी बोलना आधुनिकीकरण है तो देश का चौपट भविष्य मुबारक! कोई भी विकसित देश अपने पैसे और पैसेवालों को बचाकर रखती है, उदाहरण के लिए अगर सीसीडी वाला मामला अमेरिका में होता तो सरकार या सहयोगी औद्योगिक घराने मालिक को कर्ज से निकालते। उनको पता है कि एक बिलियन डॉलर में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लाखों नौकरियां तैयार होती है। सरकार ये काम नही करती है, ये काम दिमाग खपाकर धंधा करने वाले लोग करते है।
चीन और रूस भी पूंजीवाद के रास्ते चला गया लेकिन ममता बनर्जी को टाटा की फैक्ट्री पूंजीवाद लगने लगा! यहां के जनता और छात्र ओपी गौबा और राजीव भार्गव पढ़ते ही खुद को समाजवादी मानने लगते है। दम्भ आ जाता है कि देश का भविष्य हम ही सही सोच रहे है और फिर वही छात्र चिल्लाते है की पूंजी खराब है!
ब्रिटेन फ़्रांस और जर्मनी के बाद सबसे ज्यादा पूंजीपति किसी देश को छोड़कर गए है तो वह भारत है! कोई नई बात नही है क्योंकि पांच साल में अभी निवेशक जीएसटी, रेरा और तमाम बदलाव समझ ही रहे थे की मोदी 2.0 सरकार ने 43 प्रतिशत टैक्स का प्रावधान कर दिया। इस सरकार के पचास दिनों में देश ने एक लाख करोड़ से ज्यादा पैसा खोया है। हम अर्थ के मामले में पांचवी स्थान से सातवें स्थान पर आ गए है। आये दिन बड़े बड़े बैंक अपने कर्मचारियों को नोटिस जारी कर रहे है। भारतीय अर्थव्यवस्था के चार इंजन में से दो इंजन ने दम तोड़ दिया था। मुझे ताज्जुब नही होता है कि बिकी हुई मीडिया इन चीजो को नही दिखा रही है, ताज्जुब यह है कि फेसबुक पर जो जमात साहित्यकार है, बुद्धिजीवी बनती फिरती है, बैंकिंग सेक्टर से भी तमाम लोग है, वो क्यों नही बताते है?
मैं जानता हूँ की चंद लोग बड़े बड़े शब्दों के पहाड़ तो तोड़ते है लेकिन 100 लाइक में अगर 1 भी पढ़ता है तो लिखना क्यों बंद है? रेलवे से लाखों नौकरियां खत्म होने को है। ऑटोमोबाइल सेक्टर जो 3 करोड़ से ज्यादा नौकरियां प्रदान करता है और जीडीपी में 8 प्रतिशत का हिस्सा रखता है वो मर रहा है। मारुति और बड़ी कम्पनियों ने दसों हजारों की संख्या में नौकरी खत्म करने की योजना बना ली है। आठों बड़ी औधोगिक सपने टूट रहे है। बड़ी बात यह भी है की वियतनाम हमसे बढ़िया दर दिखा रहा है।
मैं तेरा बॉयफ्रेंड वाली पीढ़ी एकदम 'बमाया बमाया' वाले दौर में है। एकदम फर्क ही नही पड़ रहा है। जेट और बीएसनल तबाह होने को है लेकिन बस इसलिए क्योंकि हम ट्रेन इस्तेमाल कर सकते है, बीएसएनएल के जगह जियो इस्तेमाल कर सकते है, हमें कोई फर्क नही पड़ रहा है।
पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनना हलवा नही है। दुनिया में जापान उतनी पूंजी लेकर तीसरे स्थान पर काबिज है तो वहाँ के लोगों की मेहनत और चेतना जागृति का बहुत बड़ा योगदान है।
एग्रीकल्चर ग्रोथ मनमोहन सरकार से भी कम है। हम साढ़े पांच से 2.9 के पास है। सरकारी व्यय और खपत के सहारे ही देश की अर्थव्यवस्था चल रही है। सरकार की मंशा में दोष नही है, बस बदलाव ढंग से नही हो पा रहे है। यह भी एक तथ्य है की चुनाव से पहले निवेशकों के मन में शंका रही होगी और निवेश आने के कुछ दिन बाद से ही अंतर दिखना शुरू होगा। जीएसटी को लेकर बिजनेस के लिए 700 से ज्यादा बदलाव किये गए है। ये बदलाव ऑर्गनाइज सेक्टर को कम प्रभावित करते है इसलिए अनऑर्गनाइज सेक्टर ऑर्गनाइजेशन की ओर बढ़ रहे है। जूता, फ़ूड प्रोडक्ट तो कम से कम उधर ही जा रहा है।
खैर, बुरी बात है की फूडिंग प्रोडक्ट में 1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और बाकी प्रोडक्ट 5 प्रतिशत से हुए है। ये ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है।
सरकार के पास एक्सपेंडिचर को बूस्ट करने के अलावा अन्य कम ही रास्ते बचे है।
शायद अभी वाला 'बड़ा' बीत जाए तो दीवाली आने वाला है, उस समय असल बड़ा हो!
और क्या कहें, जो दो पहिया खरीदने वाले है, चार पहिया खरीदने वाले है, वो जाकर चार पहिया खरीदे!
मोदी जी डेब्ट कट करके सेक्टर को बूम करें तो अर्थव्यवस्था संभले!
सरकार के पास एक्सपेंडिचर को बूस्ट करने के अलावा अन्य कम ही रास्ते बचे है।
शायद अभी वाला 'बड़ा' बीत जाए तो दीवाली आने वाला है, उस समय असल बड़ा हो!
और क्या कहें, जो दो पहिया खरीदने वाले है, चार पहिया खरीदने वाले है, वो जाकर चार पहिया खरीदे!
मोदी जी डेब्ट कट करके सेक्टर को बूम करें तो अर्थव्यवस्था संभले!
आभार: Yashwant Singh जी