निर्वाचन व्यवस्था । अनुच्छेद 324 । Article 324 | Election System

                                                          
                                                      

  • निर्वाचन व्यवस्था अनुच्छेद 324




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  • क्या है अनुच्छेद 324 ?



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संविधान के भाग-XV में अनुच्छेद 324 से 329 तक हमारे देश के निर्वाचन से संबंधित निम्न उपबंधों का उल्लेख है :

1. संविधान ( अनुच्छेद 324 ) देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की व्यवस्था करता है । संसद, राज्य, विधायिका, राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के चुनावों के अधीक्षण, निदेशक तथा नियंत्रण की शक्ति निर्वाचन आयोग में निहित है वर्तमान समय में निर्वाचन आयोग में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा दो निर्वाचन आयुक्त है ।

2. संसद तथा प्रत्येक राज्य विधायिका के चुनाव के लिए प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में केवल एक मतदाता सूची होनी चाहिए । इस प्रकार सविधान ने सम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व तथा अलग मतदाता सूची की उस व्यवस्था को खत्म कर दिया है जो देश के विभाजन को बढ़ावा देती है ।

3. कोई व्यक्ति मतदाता सूची में नामित होने के लिए केवल धर्म, नस्ल, जाति, लिंग अथवा इनमें से किसी एक के आधार पर अपात्र नहीं हो सकता । इसके अतिरिक्त कोई व्यक्ति किसी क्षेत्र की मतदाता सूची में केवल धर्म, नस्ल, जाति अथवा इन में से किसी एक के आधार पर दावा नहीं कर सकता। इस प्रकार संविधान ने मतदान में प्रत्येक नागरिक की समानता को स्वीकार किया है ।

4. लोकसभा तथा राज्य विधानसभा के लिए निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है । इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति जो भारतीय नागरिक है तथा 18 वर्ष की आयु का है, निर्वाचन में मत देने का अधिकार प्राप्त कर लेता है यदि वह संविधान के उपबंधों अथवा उपयुक्त विधायिका ( संसद अथवा राज्य विधायिका ) द्वारा निर्मित के अधीन अनिवास, चित्तवृत्ति, अपराध या भ्रष्ट या अवैध आचरण के आधार पर अन्यथा निरर्हित नहीं कर दिया जाता है ।

5. संसद उन सभी व्यवस्थाओं का उपबंध कर सकती है जो संसद तथा राज्य विधायिकाओं के निर्वाचन मतदाता सूची की तैयारियों, निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन तथा सभी मामलों जो संवैधानिक व्यवस्थाओं की सुरक्षा के लिए आवश्यक है ।

6. राज्य विधायिका भी स्वयं के निर्वाचन से संबंधित सभी मामलों में, मतदाता सूची की तैयारियों के संबंध में तथा संबंधित संवैधानिक व्यवस्थाओं की सुरक्षा के लिए आवश्यक सभी मामलों में उपबंध बना सकती है । परंतु वे केवल उन्हीं मामलों में उपबंध बना सकते हैं, जो संसद के कार्य क्षेत्र में नहीं आते है । दूसरे शब्दों में वह केवल संसदीय विधि के अनुपूरक हो सकते हैं और उस पर अभिभावी नहीं हो सकते ।

7. संविधान घोषणा करता है कि निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन अथवा निर्वाचन क्षेत्रों के लिए आवंटित स्थानों से संबंधित विधियों पर न्यायालय में प्रश्न नहीं उठाया जा सकता । परिणामस्वरूप परिसीमन आयोग द्वारा पारित आदेश अंतिम होते हैं तथा उन्हें किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती ।

8. संविधान के अनुसार संसद अथवा राज्य विधायिका के निर्वाचन पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता, केवल एक निर्वाचन याचिका के जो ऐसे प्राधिकारों के समक्ष ऐसे तरीके से प्रस्तुत की जाए जिसका उपबंध उपयुक्त विधायिका ने किया हो । 1966 से चुनावी याचिका पर सुनवाई अकेले उच्च न्यायालय करता है किंतु अपील का अधिकार क्षेत्र केवल उच्चतम न्यायालय में है ।

अनुच्छेद 323 ख उपयुक्त विधायिका ( संसद अथवा विधायिका ) को निर्वाचन विवादों के निर्णय के लिए अधिकरण के गठन की शक्ति प्रदान करता है । ऐसे विवादों को सभी न्यायालयों के अधिकार क्षेत्रों से ( उच्चतम न्यायालय के विशेष अवकाश अपील अधिकार क्षेत्र को छोड़ कर ) बाहर रखने का भी उपबंध करता है । अभी तक ऐसे किसी अधिकरण का गठन नहीं किया गया है । यहां यह जानना आवश्यक है कि चंद्रकुमार मामले (1997) में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया है कि यह उपबंध असंवैधानिक है । यदि किसी समय ऐसा कोई अधिकरण गठित किया जाता है तो इस के निर्णयों के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है ।


संदर्भ : Laxmikant. M, Published by McGraw Hill Education (India) Private Limited, Chennai 600116,Tamil Nadu, India
   

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