रेडियो का इतिहास | रेडियो | भारतीय रेडियो | पहला रेडियो स्टेशन | भारत और रेडियो | आज़ादी के बाद रेडियो | भारत में रेडियो का इतिहास |

रेडियो का इतिहास

ट्रांसमीटर
भारत में आम लोगों को रेडियो स्टेशन चलाने की इजाज़त नहीं थी

 
सौ साल पहले 24 दिसंबर 1906 की शाम कनाडाई वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडेन ने जब अपना वॉयलिन बजाया और अटलांटिक महासागर में तैर रहे तमाम जहाजों के रेडियो ऑपरेटरों ने उस संगीत को अपने रेडियो सेट पर सुना, वह दुनिया में रेडियो प्रसारण की शुरुआत थी.


इसके बाद उसी शाम फेसेंडेन ने अपनी आवाज़ में गाना भी गाया और बाइबल से कुछ पंक्तियाँ भी पढीं.
इससे पहले मारकोनी ने सन 1900 में इंग्लैंड से अमरीका बेतार संदेश भेजकर व्यक्तिगत रेडियो संदेश भेजने की शुरुआत कर दी थी, पर एक से अधिक व्यक्तियों को एकसाथ संदेश भेजने या ब्रॉडकास्टिंग की शुरुआत 1906 में फेसेंडेन के साथ हुई.

रेडियो प्रसारण का पिछले सौ साल का इतिहास काफी रोचक रहा है.
ली द फोरेस्ट और चार्ल्स हेरॉल्ड जैसे लोगों ने इसके बाद रेडियो प्रसारण के प्रयोग करने शुरु किए. तब तक रेडियो का प्रयोग सिर्फ नौसेना तक ही सीमित था.
1917 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद किसी भी गैर फौज़ी के लिये रेडियो का प्रयोग निषिद्ध कर दिया गया.

1918 में ली द फोरेस्ट ने न्यूयॉर्क के हाईब्रिज इलाके में दुनिया का पहला रेडियो स्टेशन शुरु किया. पर कुछ दिनों बाद ही पुलिस को ख़बर लग गई और रेडियो स्टेशन बंद करा दिया गया.
नवंबर 1941 को सुभाष चंद्र बोस ने रेडियो जर्मनी से भारतवासियों को संबोधित किया |

नवंबर 1920 में नौसेना के रेडियो विभाग में काम कर चुके फ्रैंक कॉनार्ड को दुनिया में पहली बार क़ानूनी तौर पर रेडियो स्टेशन शुरु करने की अनुमति मिली.एक साल बाद ली द फोरेस्ट ने 1919 में सैन फ्रैंसिस्को में एक और रेडियो स्टेशन शुरु कर दिया.
कुछ ही सालों में देखते ही देखते दुनिया भर में सैंकड़ों रेडियो स्टेशनों ने काम करना शुरु कर दिया.
रेडियो में विज्ञापन की शुरुआत 1923 में हुई. इसके बाद ब्रिटेन में बीबीसी और अमरीका में सीबीएस और एनबीसी जैसे सरकारी रेडियो स्टेशनों की शुरुआत हुई.

भारत और रेडियो

1927 तक भारत में भी ढेरों रेडियो क्लबों की स्थापना हो चुकी थी. 1936 में भारत में सरकारी ‘इम्पेरियल रेडियो ऑफ इंडिया’ की शुरुआत हुई जो आज़ादी के बाद ऑल इंडिया रेडियो या आकाशवाणी बन गया.
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत होने पर भारत में भी रेडियो के सारे लाइसेंस रद्द कर दिए गए और ट्रांसमीटरों को सरकार के पास जमा करने के आदेश दे दिए गए.
नरीमन प्रिंटर उन दिनों बॉम्बे टेक्निकल इंस्टीट्यूट बायकुला के प्रिंसिपल थे. उन्होंने रेडियो इंजीनियरिंग की शिक्षा पाई थी. लाइसेंस रद्द होने की ख़बर सुनते ही उन्होंने अपने रेडियो ट्रांसमीटर को खोल दिया और उसके पुर्जे अलग अलग जगह पर छुपा दिए.
इस बीच गांधी जी ने अंग्रेज़ों भारत छोडो का नारा दिया. गांधी जी समेत तमाम नेता 9 अगस्त 1942 को गिरफ़्तार कर लिए गए और प्रेस पर पाबंदी लगा दी गई.
कांग्रेस के कुछ नेताओं के अनुरोध पर नरीमन प्रिंटर ने अपने ट्रांसमीटर के पुर्जे फिर से एकजुट किया. माइक जैसे कुछ सामान की कमी थी जो शिकागो रेडियो के मालिक नानक मोटवानी की दुकान से मिल गई और मुंबई के चौपाटी इलाक़े के सी व्यू बिल्डिंग से 27 अगस्त 1942 को नेशनल कांग्रेस रेडियो का प्रसारण शुरु हो गया.

रेडियो पर विज्ञापन की शुरुआत 1923 में हुई |
इसके बाद इसी रेडियो स्टेशन ने गांधी जी का भारत छोडो का संदेश, मेरठ में 300 सैनिकों के मारे जाने की ख़बर, कुछ महिलाओं के साथ अंग्रेज़ों के दुराचार जैसी ख़बरों का प्रसारण किया जिसे समाचारपत्रों में सेंसर के कारण प्रकाशित नहीं किया गया था.
पहला ट्रांसमीटर 10 किलोवाट का था जिसे शीघ्र ही नरीमन प्रिंटर ने और सामान जोडकर सौ किलोवाट का कर दिया. अंग्रेज़ पुलिस की नज़र से बचने के लिए ट्रांसमीटर को तीन महीने के भीतर ही सात अलग अलग स्थानों पर ले जाया गया.
12 नवंबर 1942 को नरीमन प्रिंटर और उषा मेहता को गिरफ़्तार कर लिया गया और नेशनल कांग्रेस रेडियो की कहानी यहीं ख़त्म हो गई.
नवंबर 1941 में रेडियो जर्मनी से नेताजी सुभाष चंद्र बोस का भारतीयों के नाम संदेश भारत में रेडियो के इतिहास में एक और प्रसिद्ध दिन रहा जब नेताजी ने कहा था, “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा.” इसके बाद 1942 में आज़ाद हिंद रेडियो की स्थापना हुई जो पहले जर्मनी से फिर सिंगापुर और रंगून से भारतीयों के लिये समाचार प्रसारित करता रहा.

आज़ादी के बाद



आज़ादी के बाद अब तक भारत में रेडियो का इतिहास सरकारी ही रहा है
यह एक विडंबना है कि स्वतंत्र भारत की सरकार ने आम भारतीय को रेडियो चलाने की अनुमति नहीं दी जबकि एक समय ब्रिटिश शासन में भी ऐसी बंदिश नहीं थी.
आज़ादी के बाद भारत में रेडियो सरकारी नियंत्रणमें रहा |
सरकारी संरक्षण में रेडियो का काफी प्रसार हुआ. 1947 में आकाशवाणी के पास छह रेडियो स्टेशन थे और उसकी पहुंच 11 प्रतिशत लोगों तक ही थी. आज आकाशवाणी के पास 223 रेडियो स्टेशन हैं और उसकी पहुंच 99.1 फ़ीसदी भारतीयों तक है.
टेलीविज़न के आगमन के बाद शहरों में रेडियो के श्रोता कम होते गए, पर एफएम रेडियो के आगमन के बाद अब शहरों में भी रेडियो के श्रोता बढने लगे हैं.
पर गैरसरकारी रेडियो में अब भी समाचार या समसामयिक विषयों की चर्चा पर पाबंदी है.
इस बीच आम जनता को रेडियो स्टेशन चलाने देने की अनुमति के लिए सरकार पर दबाव बढता रहा है.
1995 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि रेडियो तरंगों पर सरकार का एकाधिकार नहीं है. सन 2002 में एनडीए सरकार ने शिक्षण संस्थाओं को कैंपस रेडियो स्टेशन खोलने की अनुमति दी. 16 नवम्बर 2006 को यूपीए सरकार ने स्वयंसेवी संस्थाओं को रेडियो स्टेशन खोलने की इज़ाज़त दी है.
इन रेडियो स्टेशनों में भी समाचार या समसामयिक विषयों की चर्चा पर पाबंदी है पर इसे रेडियो जैसे जन माध्यम के लोकतंत्रीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम माना जा रहा है.

जनमाध्यम के रूप में रेडियो का विकास


आधुनिक युग में रेडियो जनसंचार का सशक्त माध्यम है। एक जनमाध्यम के रूप में इसकी महत्ता उन क्षेत्रों में अधिक है, जहां बिजली की पहुंच और पर्याप्त उपलब्धता नहीं है। सस्ता होने के कारण आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों का भी रेडियो इकलौता संचार माध्यम है। वैसे, भारत में रेडियो प्रसारण का प्रारंभिक (प्रायोगिक) प्रयास सन् 1923 में हो गया था, किन्तु अधिकारिक रूप में इसका प्रसारण सन् 1927 में प्रारंभ हुआ। तब से अब तक एक जनमाध्यम के रूप में रेडियो का काफी विकास हो चुका है। इसका सर्वोत्तम उदाहरण है- एफ.एम. (फ्रीक्वेंसी मॉड्यूल) रेडियो, जिसकी शुरूआत भारत में सन् 1990 के दशक में हुई। 

एक जनमाध्यम के रूप में इसकी सफलता से प्रभावित होकर कई विश्वविद्यालयों ने शैक्षिक प्रसारण के उद्देश्य से एफ.एम. रेडियो का प्रसारण प्रारंभ कर दिया है। वर्तमान में 24 भाषाओं तथा 146 बोलियों में रेडियो प्रसारण हो रहा है, जिसकी पहुंच देश की 99 प्रतिशत जनसंख्या तक है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधीे ने जनमाध्यम के रूप में रेडियो की ताकत को काफी पहले पहचान लिया था तथा रेडियो को ‘अद्भूत शक्ति‘ कह कर सम्बोधित किया था। 

सन् 1947 में रेडियो प्रसारण केंद्र पर जाकर अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा था कि- मैं रेडियों में एक शक्ति के रूप में देखता हूं। यह इकलौता माध्यम है, जिसे अपना काम-काज करते हुए भी सुना जा सकता है। रेडियो पर साहित्य, कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, समाज कल्याण, बोल-गोपाल, युवा, विश्वविद्यालय, पत्रकारिता, इतिहास, खेलकूद, महिला कल्याण, समाज सुधार इत्यादि से सम्बन्धित कार्यक्रमों (साक्षात्कार, विचार गोष्ठी, काव्य पाठ, नाटक, रूपक, न्यूजरील, रेडियो रपट इत्यादि) का प्रसारण होता है। 

जनमाध्यम के रूप में प्रचलित रेडियो एक श्रव्य माध्यम हैं, जिस पर प्रसारित कार्यक्रमों को सुनकर, केवल सुनकर ग्रहण किया जा सकता है। इसके शब्द सहज एवं सर्वग्राह्य होते हैं। शब्दों की महत्ता से ही किसी घटना को जीवान्त बनाया जाता है। रेडियो पर प्रसारित शब्द ही श्रोताओं के मस्तिष्क में घटना की छवि को अंकित करते हैं। इन शब्दों में जादू करने की क्षमता होती है, जिसे सुनने के बाद श्रोता सम्मोहित हो जाते हैं। 

लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में रेडियो एक जनमाध्यम के रूप में देश की सभी छोटी-बड़ी समस्याओं, स्वप्नों, सच्चाइयों और चुनौतियों को सटीक स्वर देकर प्रस्तुत करता है, जिसमें शासकों की नीति तथा शासितों की नियति बदल जाती है। इस प्रकार, रेडियो सामाजिक परिवर्तन व व्यक्ति उत्थान में प्रेरक की भूमिका निभाता है। एक जनमाध्यम के रूप में राष्ट्रीय एकता, भावनात्मक एकता तथा पारस्परिक सद्भाव को बनाये रखने में भी रेडियो का विशेष योगदान है। इसके माध्यम से भारतीय समाज में परिवार नियोजन सम्बन्धी कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार कर जनसंख्या नियंत्रण तथा परिवार कल्याण को गतिमान बनाने में भारत सरकार को सहायता मिली है। रेडियो पर प्रसारित कृषि व बागवानी सम्बन्धी कार्यक्रमों के प्रसारण से किसानों व बागवानों को अपनी आर्थिक स्थिति में अर्थप्रद बदलाव देने में कामयाबी मिली है। सन् 1997 से रेडियो प्रसारण पर भारत सरकार का नहीं, बल्कि ‘प्रसार भारती‘ नामक स्वायत्तशासी निकाय का नियंत्रण है। ------- 

संदर्भ 1. ग्लोबल मीडिया टूडे, लेखक- भगवान देव पाण्डेय, मिथलेश कुमार पाण्डेय, नरेंद्र प्रताप सिंह। 
2. भारत में जनसंचार एवं पत्रकारिता, लेखक- अवघेश कुमार यादव। 
3. निबन्ध माला, लेखक- योगेश चंद्र जैन।

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.